जानिए कि आपका डेटा कितना कीमती है ?

बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ, जब अमेरिका ने चीन की संचार कंपनी हुआवेई पर पाबंदी लगा दी थी। यहाँ तक उस अमेरिकी कंपनियों को भी किसी भी संबंध रखने के लिए से रोक दिया गया। हुआबेई के स्मार्टफोन जो दुनिया भर में खासे लोकप्रिय हो रहे थे, उन पर अब Google Play स्टोर है की सुविधा खत्म करदी गई है। 

know how your data is precious
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हुआवेई को सबसे ज्यादा झटका 5 जी सेवा के मामले में लगा दिया गया है। इसकी तकनीक है विकसित करने के मामले में वह सबसे आगे है और अमेरिका को छोड़कर अभी तक जहां-जहां भी 5 जी सेवा है शुरू हुई है,

    ज्यादातर जगह हुआबेई की तकनीक ही इस्तेमाल हो रही है। अमेरिका का तर्क है कि हुआवेई चीन सरकारसे नजदीकी रिश्ते रखने वाली कंपनी है, और वह चीन के लिए जारी सी का काम भी करती है। 

अमेरिका ने यही आरोप एक और चीनी कंपनी जेडटीई पर भी लगाए हैं और उस पर भी पाबंदी लग चुकी है। यह भी माना जाता हैकि अमेरिका ने जो आरोप लगाए हैं  उसके पी पत नहोने के बावजूद इतने कड़े कदम उठाए गए हैं 

 ये कदम भी तब उठाए गए हैं, जब चीन और अमेरिका के बीच या तो व्यापारिक तनाव हैं या राजनयिक। इसके मुकाबले अगर हम भारत द्वारा 59 चीनी मोबाइल एप पर पाबंदी को देखें, तो यह तो उतना बड़ा कदम ही दिखता है और ही उतना कड़ा। 

वह भी तब, जब चीन भारत से एक बहुत बड़े सामरिक तनाव में उलझा हुआ है। ऐसे मौकों पर इस तरंह की पाबंदियां कोई नई बात नहीं हैं , इसलिए पूरी दुनियां ने भी इसे सहजता से ही लिया है। यूं भी इन दिनों अक्सरकहा जाता है कि पूरी दुनिया में युद्ध का सबसे बड़ा हथियार डाट ही है, इसलिए भी ऐसे मौकों पर उन रास्तों को बंद करना जरूरी हो जाता है, जिनसे एक देश का डाट दूसरे देश में पहुंच सकता है। 


फिर यंह कदम भी उस चीन के खिलाफ उठाया गया हैजो इस तरह की पांबंदियों के मामले में सबसे आगे रहा है। वाट्सएप्र जैसे तमाम एप पर वहां पहले से ही पाबंदीहै। 

कई तरह से भारत का डाय चीन के सरवरों में पहुंच मामले में अभी जो चीन पर सर्जिकल स्ट्राइक की बात हो रही है, वह राजनीतिकऔर कई भावनात्मक कारणों से जरूर महत्वपूर्ण हो सकती है, पर इससे आगे जाकर उससे कोई बड़ी उम्मीद फिलहाल नहीं बांधी जा सकती। दुनिया के कारोबार में डाटा बड़ी टेढ़ी चीज है।

किन्हीं एक-दो देशों के एप या सर्वरों परपाबंदी लगाकर भी आप यह नहीं सोच सकते कि इससे डाटा का प्रवाह रुक जाएगा। डाटा का बाजार इस समय शायद दुनिया का सबसे जटिल बाजार है, जिसमें कौन-सा कहां पैदा हो रहा है, कहां जां रहा है, कहां जमा हो रहा है, कहां बिक रहा है और कहां उसका इस्तेमाल हो रहा है, उसके बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। मोबाइल एप, ईमेल सर्वर और वेबसाइट आपको जो मुफ्त सेवा देते हैं, उसके बदले वे आपकी जरूरत, पसंद-नापसंद, खरीदारी, आदतों से जुड़े आंकड़े जमा करते हैं और इसके पहले कि आपका अगला दिन शुरू हो, उन्हें कई जगह बेचा जा चुका होता है। डाटा के इस बाजार में विक्रेता भी हैं, उनका भंडारण करने वालेविश्लेषण करने वाले भी हैं, उनके दलाल भी हैं | उनके खरीदार भी हैं और चोर-उचक्के भी है|   


यह कोई ऐसी जानकारी नहीं है, जिसकी भनक॑ हाल-फिलहाल में ही लगी हो। इन्हीं 59 में से एक एप यूसी ब्राउजर पर तो कुछ समय पहले भी भारत में पाबंदी लगाई गई थी, लेकिन बाद में उसे हटा दिया गया। तर्क तब भी डाटा का ही था। इसलिए डाय के यह माना जाता है कि साइबर युग में डाटा का महत्व उतना ही है

जितना औद्योगिक क्रांति के बाद के युग में पेट्रोल का था। डाटा ही वह ईंधन है, जिससे इंटरनेट की दुनिया और इंटरनेटकी कंपनियां चलती हैं। यह डाय ही है, जिसके कारण गूगल दुनिया के बाजार में कोई भी सामान बेचे बगैर 66 अरब डॉलर के सालाना कारोबार वाली ऐसी कंपनी बन गई है, जिसकी कुल संपत्तियां 3
अरब डॉलर से भी ज्यादा हैं।


 डाटा से कमाई करने वाली कंपनियां आज जिस जगह पर पहुंच चुकी हैं, पेट्रोलियम का कारोबार करने वाली कोई भी कंपनी आज उस्रके आस-पास भी नहीं दिखती। और इस समय, जब प्रेट्रॉलियम का बाजार लगातार उतार-चढ़ाव के झटकों के
बीच डोल रहा है, डाटा का कारोबार लगातार ऊपर की ओर जा रहा है।

ऐसे में, यह उम्मीद व्यर्थ है कि महज चंद पाबंदियों से डाय का प्रवाह पूरी तरह रुक जाएगा, जिसने एक तरफ तो हार्डवेयर के जरिए हमारे बाजार के एक बड़े हिस्से पर कब्जा जमा रखा है, और दूसरी तरफ, वह डाटा कारोबार का बड़ा खिलाड़ी भी बन चुका है। और अगर हम भारत से चीन की ओर जाने वाले सभी तरह के डाटा परजैसे-तैसे पूरी तरह पाबंदी लगा भी दें, तब भी इसे खुले बाजार से खरीदने का रास्ता उसके पास हमेशा रहेगा।

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